राघवेन्द्र सिंह - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
हे क़लम! तुम्हें है नमन सदा - कविता - राघवेंद्र सिंह
गुरुवार, दिसंबर 29, 2022
हे क़लम! तुम्हें है नमन सदा,
कुछ आज परिश्रम कर जाओ।
एक नई प्रेरणा लिखकर तुम,
उद्गार हृदय में भर जाओ।
हर पंक्ति में नव उद्देश्य सदा,
हर एक दिशा में दिखे यही।
दो नया यहाँ संदेश नवल,
हर बूँद तुम्हारी लिखे यही।
हर बालक यहाँ विवेकानंद,
रानी लक्ष्मी हर बाला हो।
हर कवयित्री महादेवी हो,
हर कवि यहाँ निराला हो।
हर घाटी हल्दीघाटी हो,
हर योद्धा यहाँ प्रताप बने।
हर धाय यहाँ पन्ना ही हो,
हर घोड़ा चेतक टाप बने।
हर एक नदी पावन गंगा,
हर पर्वत यहाँ हिमालय हो।
हर शिला स्फटिक शिला यहाँ,
हर आलय यहाँ शिवालय हो।
हर पुत्र यहाँ श्रवण कुमार,
हर माता यहाँ यशोदा हो।
हर लाल यहाँ कान्हा जन्में,
हर पौधा तुलसी पौधा हो।
हर नर मर्यादित राम बने,
हर नारी कुल की सीता हो।
हर गुरु यहाँ चाणक्य बने,
हर पुस्तक पावन गीता हो।
हर नगरी हो यहाँ अवधपुरी,
हर संगम यहाँ प्रयाग बने।
हर घाट बनारस घाट सा हो,
हर आग यहाँ अनुराग बने।
हर वृक्ष यहाँ हो पारिजात,
हर सन्यासी यहाँ बुद्ध बने।
हर धर्म यहाँ मानवता हो,
हर जल गंगा सा शुद्ध बने।
हर ताव यहाँ चंदशेखर हो,
हर युवक भगत सिंह वीर बने।
हर नायक हो अब्दुल हमीद,
हर देशभक्त यहाँ तीर बने।
हर वैज्ञानिक अब्दुल कलाम,
हर ज्ञान यहाँ विज्ञान बने।
हर जननायक हो अटल यहाँ,
हर दानी कर्ण महान बने।
हर क्रांति यहाँ सन् सत्तावन,
हर पुरुष मराठा शिवा बने।
हर शंख विजय का शंखनाद,
हर तम का भेदन दिवा बने।
हर अनुज यहाँ हो भरत, लखन,
हर प्रेम विरहिणी मीरा हो।
हर सत्य अहिंसा हो गाँधी,
हर दोहा यहाँ कबीरा हो।
हर चौपाई यहाँ मानस हो,
हर क़लम नया इतिहास गढ़े।
हर कविता प्रेरित गीत बने,
हर क़दम शिखर की ओर चढ़े।
हर शब्द बने परिचय कवि का,
हर पंक्ति यहाँ व्यवहार बने।
हर कविता में जीवन कवि का,
हर क्षण परिणय शृंगार बने।
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