आयुष सोनी - उमरिया (मध्यप्रदेश)
पुरुष की कल्पनाएँ - कविता - आयुष सोनी
गुरुवार, दिसंबर 15, 2022
दफ़्तर से लौटकर
थका हुआ
पलँग पर बेहोश सा लेटा हुआ
एक पुरुष
अपने मन में कैसी कल्पना करता है?
वह कल्पना करता है
उस दिन की
जब वह सभी सामाजिक बंधनों से मुक्त
किसी नदी या झील के किनारे बैठा होगा
जब वह सुन सकेगा
सुबह के पंछियों की आवाज़ें
जब वह देख सकेगा
ढलता हुआ सूर्य
जब वह भी गिन सकेगा
आसमान के तारे
जब वह महसूस कर सकेगा
अपने आस-पास के वातावरण में मौजूद शांति
सभी प्रकार की चिंताओं से परे
जब वह सुन सकेगा
हृदय की बातें,
जब वह बातें कर सकेगा
ख़ुद से,
जब नहीं खलेगी उसे ये बेपरवाही
और भाने लगेगा अकेलापन
इस अकेलेपन में वह सुन रहा होगा
कोई मधुर संगीत
जिसकी धुन में
उसके पैर थिरकने के लिए
उत्साहित हो रहे होंगें
किंतु इसी बीच
अरनिमा अपने कोमल हाथों से
उसके पलकों को स्पर्श करती है
और उसे खींच लाती है
काल्पनिक लोक से बाहर
वह उठता है
और अपनी काल्पनिकता को
अपने थैले में भरकर
फिर से दफ़्तर के रास्ते
चल पड़ता है
उसकी आत्मा से
महज़ एक आवाज़ आती है
"पुरुष की कल्पनाएँ
क्षणभंगुर होती हैं।"
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