प्रशान्त 'अरहत' - शाहाबाद, हरदोई (उत्तर प्रदेश)
संधि की शर्तों पे कायम हो गई है दोस्ती - ग़ज़ल - प्रशान्त 'अरहत'
मंगलवार, जनवरी 03, 2023
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
तक़ती : 2122 2122 2122 212
संधि की शर्तों पे कायम हो गई है दोस्ती,
अब नए आयाम गढ़ती जा रही है दोस्ती।
कॉल तुमने काट दी ये बोलकर मैं व्यस्त हूँ,
झूठ को पहचान कर उस पर हँसी है दोस्ती।
देखकर लहज़ा तुम्हारा सोचता हूँ मैं यही,
दुश्मनी तुमसे भली है या भली है दोस्ती।
वो नज़र-अंदाज़ करने की हदें सब देखकर,
रेतकर अपना गला अब मर रही है दोस्ती।
भावना से जो घिरे हैं, वो तो धोखा खाएँगे,
आज कल उनके लिए मीठी छुरी है दोस्ती।
फ़र्क़ इतना है तुम्हारे और मेरे बीच में,
नफ़रतें तुमने चुनी, मैंने चुनी है दोस्ती।
शाइरी पढ़कर मेरी 'अरहत' समझते हो मुझे,
बाद में पछताओगे तुमसे नई है दोस्ती।
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