राघवेन्द्र सिंह - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
हे मधुमास! ऋतुपति बसंत - कविता - राघवेंद्र सिंह
गुरुवार, जनवरी 26, 2023
हे मधुमास! ऋतुपति बसंत,
आओ राजा हे अधिराज!
हे मधुऋतु! हे कुसुमाकर प्रिय!
आओ बासंतिक पहन ताज।
आ गया माघ का शुक्ल पक्ष,
आ गई पंचमी तिथि पावन।
तुम करो अलंकृत स्वर्ण धरा,
आओ ऋतुराज हे मनभावन।
है बीत चुकी वह ग्रीष्म-शरद,
ऋतुओं की रानी वर्षा ऋतु।
हेमंत ऋतु का गमन हुआ,
आ करो विदाई शीत ऋतु।
आ गई स्वयं वीणापाणि,
वीणा को देने मधुर साज।
हे मधुमास! ऋतुपति बसंत,
आओ राजा हे अधिराज!
चहुँ ओर बसंती पवन चली,
हो रहा कोलाहल का प्रसार।
पुष्पों का जागा अन्तर्मन,
करने को धरती का शृंगार।
डालों पर कूका कोकिल स्वर,
कोमल कोपल हैं मुस्काईं।
खेतों की पीली सरसों भी,
नव-वधू आज बन शरमाई।
बेलों की जागी तरुणाई,
बौरें आमों पर गईं झूल।
कवि का बासंतिक मन झूमा,
है चमक उठा वह बन दुकूल।
तेरा अभिवादन करने को,
संगीत स्वयं आया है आज।
हे मधुमास! ऋतुपति बसंत,
आओ राजा हे अधिराज!
आहट परिवर्तन की आई,
हरियाली ने गाया मल्हार।
है चहुँ ओर विस्तृत जग में,
वसुधा का पीताम्बर शृंगार।
नव अम्बर नव हैं विहग सभी,
मकरंदो से निर्गत सुगंध।
हो रही नवल हर रात्रि यहाँ,
नव गति में बनता नवल छंद।
हे सरस्वती! विद्या देवी,
तेरा पूजन हो दिग दिगंत।
जब जब आए यह महातिथि,
तू लेकर आना ही बसंत।
आओ वसुधा की नवल आस,
सुख समृद्धि के महाराज।
हे मधुमास! ऋतुपति बसंत,
आओ राजा हे अधिराज!
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