देवेश द्विवेदी 'देवेश' - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
माँ - कविता - देवेश द्विवेदी 'देवेश'
सोमवार, जनवरी 09, 2023
1.
आज नहीं जो हो पाती है,
बेशक कल हो जाती है।
माँ जब साथ में होती है,
हर मुश्किल हल हो जाती है।
बस मेहनत की रोटी खाना,
कह हाथ फेरती है सिर पर।
हर बूँद पसीने की माथे की,
गंगाजल हो जाती है।
2.
माँ न रही हो पूज्य जगत में
ऐसा कोई दौर नहीं,
माँ के शीतल आँचल जैसा
दिखता कोई ठौर नहीं,
लाखों रिश्ते मिल जाएँ पर
बच्चे करते ग़ौर नहीं,
उनकी ख़ातिर माँ से बेहतर
दुनिया में कोई और नहीं।
3.
माँ जन्म देती है सन्तान को
करती है भरण-पोषण,
आचरण में ढालती है उत्तम संस्कार,
चूमती है ललाट, देती है आशीष,
घिस देती है माथा टेक-टेक
देवालयों की चौखट के पत्थर,
करती है प्रार्थना उसके दीर्घायुष्य की,
बाँधती है मन्त्रपूत यन्त्र भुजा पर
कुशलता के लिए,
उसकी इस निसर्ग-ममता का ऋण
नहीं चुका सकती सन्तान,
वह नहीं हो सकती उऋण
जीवन भर माँ से।
4.
बहुत ख़ुश थी वह
उस दिन
जब उसे पुत्ररत्न की
प्राप्ति हुई थी
फूल की थाली बजवाई थी उसने
बतासे बँटवाए थे
पर आज...
सिंहनी की कोख से
सियार के जन्म की
कहावत को
चरितार्थ होते देख रही है
स्वयं अपनी आँखों से
ठोंक रही है माथा
दोनों हाथों से।
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