ईशांत त्रिपाठी - मैदानी, रीवा (मध्यप्रदेश)
मैं नर के उर की नारी हूँ - कविता - ईशांत त्रिपाठी
रविवार, जनवरी 29, 2023
मैं नर के उर की नारी हूँ,
कुंठित व्यथित दुखारी हूँ,
अधिकारों की हनन कथा को,
वर्णित करके हारी हूँ,
मैं नर के उर की नारी हूँ।
संवेदन का परिधान ओढ़ के,
जन्म हुआ रसराज रूप में,
अतिक्रमण के भार मात्र से,
स्व अस्तित्व को विसारी हूँ,
मैं नर के उर की नारी हूँ।
कुछ ख़ुद नोचा,
कुछ जग नोचा,
मैं तिलमिल प्राण को त्यागी हूँ,
मैं नर के उर की नारी हूँ।
तू पुरुषार्थ तो कर
मुझे शूल नहीं,
पर मैं भी हूँ
मुझे भूल नहीं,
मैं इष्ट की राह को बारी हूँ,
मैं नर के उर की नारी हूँ।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर