प्रवल राणा 'प्रवल' - ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश)
सुभाष चंद्र बोस - कविता - प्रवल राणा 'प्रवल'
रविवार, जनवरी 22, 2023
23 जनवरी को कटक में जन्मे,
सुनो सुभाष की जीवन गाथा।
जानकी नाथ बोस थे पिताश्री,
प्रभावती थीं सुभाष की माता।
कटक से प्राथमिक शिक्षा ली थी,
सन 1915 में इन्टर पास किया।
प्रेसिडेंसी कॉलेज जाकर फिर,
बी॰ ए॰ ऑनर्स में दर्शन शास्त्र लिया।
टेरीटोरिअल आर्मी में भर्ती हुए,
बी॰ ए॰ ऑनर्स भी पास किया।
मेधावी तो इतने थे सुभाष,
प्रथम श्रेणी में पास किया।
पिता की इच्छा रखने को,
1919 में लंदन प्रस्थान किया।
1920 में आई॰ सी॰ ऐस॰ की,
मेरिट में चौथा स्थान लिया।
देशप्रेम का था जज़्बा इतना,
अंग्रेजों की ग़ुलामी कर न पाए।
1921 में त्याग दिया वो पद,
भारत देश को वापिस आए।
देशबंधु और टैगोर सरीखे,
महापुरुषों से मिलके शिक्षा ली।
गांधी जी से भी मिल कर,
स्वर्णिम भविष्य की नींव रखी।
देशबंधु के साथ मिले और,
राजनीतिक प्रयोग किया।
स्वराज पार्टी जीती चुनाव,
कोलकाता में सहयोग किया।
पूर्णस्वराज की माँगें,
नेताजी ने ही उठाई थीं।
26 जनवरी 1931 को,
अंग्रेजों की लाठी खाई थीं।
1933 से तीन वर्ष तक,
बीमारी में यूरोप में बिताए।
यूरोपीय नेताओं से उन्होंने,
आत्मीय सम्बन्ध बनाए।
भारत देश स्वतंत्र कराने को,
सुभाषचंद्र सदैव कटिबद्ध रहे।
देशवासियों की ख़ातिर ही,
जीवन में बहुत से कष्ट सहे।
1938 में प्रथम बार कांग्रेस,
अध्यक्ष की हुई पदस्थापना।
सुभाष ने की योजना आयोग,
विज्ञानपरिषद की स्थापना।
1939 में फिर अध्यक्ष बने,
सुभाष तो गांधी ने मुख मोड़ा।
मजबूरन तब सुभाष चन्द्र ने,
कांग्रेस पार्टी को ख़ुद छोड़ा।
फ़ॉरवर्ड ब्लॉक बनाया फिर,
संघर्ष बहुत ही तेज़ किया।
भारतवर्ष में अंग्रेजों के,
शासन को निस्तेज किया।
नज़रबन्द किया स्वातंत्र्य वीर को,
किन्तु सरकार सम्हाल नहीं पाई।
विदेश पलायन किया सुभाष ने,
सेना या पुलिस खोज नहीं पाई।
पेशावर होकर अफ़ग़ानिस्तान
और फिर काबुल में पहुँचे।
मित्रों की सहायता लेकर,
सुभाषचंद्र बर्लिन पहुँचे।
हिटलर से भी मिले और,
स्वतंत्रता में सहयोग लिया।
यात्राएँ करते-करते उनका,
जापान से फिर सहयोग मिला।
आज़ाद हिंद फ़ौज बनाई,
पहली स्वाधीन सरकार बनी।
झाँसी की रानी रेजिमेंट जो,
महिलाओं की इतिहास बनी।
"तुम मुझे ख़ून दो मैं तुमको
आज़ादी दूँगा" नेताजी ने बोला था।
दिल्ली चलो का नारा दिया,
वो हर भारतवासी ने बोला था।
पूर्वोत्तर के सब राज्यों में,
अंग्रेजी सेना को हरा दिया था।
दुर्भाग्य देश का उसी समय,
अमरीका ने जापान हराया था।
पुनः शक्ति संचय करने नेताजी,
ने रूस को जाना चाहा था।
हुआ लापता विमान हवा में,
फिर हो न सका जो चाहा था।
वायुयान की दुर्घटना में,
जीवित सुभाष नहीं रहे।
भारतीयों के हृदय से अब,
भी बाहर सुभाष नहीं गए।
नेताजी का नाम हमेशा,
हर दिल मे जीवित रहेगा।
स्वर्णाक्षरों में नाम हमेशा,
सुभाष बोस अंकित रहेगा।
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