अन्तर्मन पुलकित मातृत्व भाव - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
शनिवार, अप्रैल 15, 2023
अन्तर्मन पुलकित मातृत्व भाव,
पूर्ण नारीत्व सृजन तन होता है।
अनुभूति सकल सुख शुभ जीवन,
सुख सन्तान प्राप्ति मन छाता है।
नारीत्व सफल गर्भाधान मुदित,
अरुणाभ प्रभात खिल जाता है।
अभिलाषी विलास परणीत प्रीत,
दाम्पत्य सफल चारु बन जाता है।
नूतन चारु सृजन स्वागत भविष्य,
सूरज चन्द्र ज्योति बन छाता है।
सब क्लेश वेदना तन मन अविरत,
ममतांचल गर्भ सह जाता है।
उर वात्सल्य ललित लालित्य सृजित,
आगन्तुक दर्शन ललचाता है।
पीन पयोधर उत्तुंग शिखर युगल,
कामधेनु समान भर जाता है।
लालायित मन नवयुगसृजन स्वर्ण,
उल्लास मधुर मन मदमाता है।
निर्माण महल सुख सन्तान स्वप्न,
प्रसूति क्लेश विकट मिट जाता है।
नवपौध अंकुरित नवप्रीत मिलन,
बहुरंग सोच काम सुख भाता है।
सौभाग्य सीथ सज प्रीतम कुमकुम,
अभिमान नार्य मान जग भाता है।
मातृत्व मनसि रस माधुर्य पूरित,
जीवन्त सुख निकुंज बन जाता है।
मधुमास मुकुल मकरन्द मुदित,
अमोल कीर्ति व्योम मुस्काता है।
निशिचन्द्र प्रभा सन्तति तारक सम,
रजनीगंधा सम इठलाती है।
आलोकित नारी लखि व्योम अरुण,
कोमल किसलय कुसुमित भाता है।
मधुगान श्रवित सुख सन्तति आगम,
सम्मान नारी गृह बढ़ जाता है।
पिकगान मधुर रस शुभकाम सुभग,
मधु श्रावण आगम रति भाता है।
अकल्पनीय सुखद संतान भाव,
अवर्णनीय मातृत्व बन जाता है।
मानो यथार्थ सुख नारी जीवन,
सन्तति हर्ष कुंज बन जाता है।
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