डॉ॰ आलोक चांटिया - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
औरत - कविता - डॉ॰ आलोक चांटिया
शुक्रवार, अप्रैल 14, 2023
बड़ी अजीब सी बात है
कि उसके जीवन में
आज भी वैसी ही रात है
कहते तो यह भी है कि
वह जैसे चाहे जी सकती है
जहाँ चाहे रह सकती है
अब आसमान के पार तक
उसके लिए खुलापन है
वह किसी की ग़ुलाम नहीं है
किसी के पैर की जूती भी नहीं है
वह औरत है जो आदमी के
साथ पूरे-पूरे बराबर है
पता नहीं क्यों यह एक
झूठी ख़बर है आज भी वह
कछुए की तरह जीने के लिए
ख़ुद अपने को अपने
खोल में समेटे रहती है
पर हर क़लम हर इबारत
हर काग़ज़ उसे औरत देवी
न जाने क्या-क्या कहती है
क्या आपको मालूम है कि
आदमी की तरह पूरी
बराबर वाली औरत इस
दुनिया में कहाँ रहती है?
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर