तन्हाई ने घेरा है - नवगीत - अविनाश ब्यौहार

कितने रौशनदान खुले हैं,
फिर भी तम का डेरा है।

बिरवा सूखता 
है रिश्तों का।
अटूट सिलसिला
है किस्तों का॥

पल भर को भी नींद न आए,
कैसा रैन बसेरा है।

अमन है ऐसा
जल बिन मछली।
मक्कारी ज्यों
साफ़ है बच ली॥

सन्नाटा बुनता तन्हाई
तन्हाई ने घेरा है।


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