तेरी दावत में गर खाना नहीं था - ग़ज़ल - डॉ॰ राकेश जोशी
शनिवार, अगस्त 19, 2023
अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
तक़ती : 1222 1222 122
तेरी दावत में गर खाना नहीं था,
तुझे तंबू भी लगवाना नहीं था।
मेरा कुरता पुराना हो गया है,
मुझे महफ़िल में यूँ आना नहीं था।
इमारत में लगा लेता उसे मैं,
मुझे पत्थर से टकराना नहीं था।
ये मेरा था सफ़र, मैंने चुना था,
मुझे काँटों से घबराना नहीं था।
समझ लेता मैं ख़ुद ही बात उसकी,
मुझे उसको तो समझाना नहीं था।
तुझे राजा बना देते कभी का,
मगर अफ़सोस! तू काना नहीं था।
छुपाते हम कहाँ पर आँसुओं को,
वहाँ कोई भी तहख़ाना नहीं था।
मुहब्बत तो इबादत थी किसी दिन,
फ़क़त जी का ही बहलाना नहीं था।
जहाँ पर युद्ध में शामिल थे सारे,
वहाँ तुमको भी घबराना नहीं था।
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