राघवेन्द्र सिंह - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
मैं भारत की स्वतंत्रता हूँ - कविता - राघवेंद्र सिंह
मंगलवार, अगस्त 15, 2023
मैं विमुक्त, नव दिनकर जैसी,
मैं भारत की स्वतंत्रता हूँ।
नवल दिवस, नव उद्घोषित रव,
सप्त सरित की पवित्रता हूँ।
मुझमें जन-जन शुभेषणा है,
मुझमें कोटि कण्ठ हुँकार।
मुझमें बसती प्रथम स्फुल्लिंग,
सन् सत्तावन का उद्गार।
मुझमें ही मंगल का तेवर,
बेगम हज़रत महल का वार।
मुझमें झाँसी का गौरव है,
स्वयं मैं रानी की तलवार।
नवल कार्य उद्देश्य यहाँ मैं,
मैं जीवित पथ विचित्रता हूँ।
स्वतंत्रता हूँ, स्वतंत्रता हूँ,
मैं भारत की स्वतंत्रता हूँ।
मुझमें शिशुओं की चीख़ें हैं,
मुझमें ही लाशों का ढेर।
मुझमें विस्फोटों का उत्तर,
मुझमें बसे स्वयं शमशेर।
मुझमें शौर्य वीरता बसती,
मुझमें ही बसती ललकार।
मुझमें भगत सिंह का यौवन,
देशभक्ति और फाँसी हार,
मुझमें ही है रक्त समाहित,
मुझमें ही जीवित बलिदान।
मुझमें ही कण-कण का क्रंदन,
मुझमें ही बसता यशगान।
शुद्ध चित्र, नव इंद्रिय पथ ले,
विजय एक पथ एकाग्रता हूँ।
स्वतंत्रता हूँ, स्वतंत्रता हूँ,
मैं भारत की स्वतंत्रता हूँ।
मुझमें ही है इंक़लाब वह,
और बिस्मिल का सरफ़रोश।
मुझमें ही गाँधी नेहरू हैं,
चंद्रशेखर आज़ाद जोश।
मुझमें ही नारा सुभाष का,
मुझमें ही संघर्षित जेल।
मुझमें सत्य, अहिंसा बसता,
मुझमें वल्लभ भाई पटेल।
जलियाँवाला बाग़ है मुझमें,
मुझमें ही चौरी चौरा।
मुझमें ही अगणित आंदोलन,
मुझमें ही दांडी दौरा।
अगणित वीर सपूतों की मैं,
लिए धरा पर समग्रता हूँ।
स्वतंत्रता हूँ, स्वतंत्रता हूँ,
मैं भारत की स्वतंत्रता हूँ।
बलिदानों की मिट्टी मुझमें,
मुझमें ही बसते अवशेष।
मुझमें राणा,शिवा और पृथ्वी,
मुझमें पौरुष बसे विशेष।
मुझमें ही है विविध एकता,
मुझमें ही वह अखण्डता है।
मुझमें त्याग, समर्पण बसता,
मुझमें ही वह प्रचण्डता है।
देशभक्ति की मुझमें झाँकी,
मुझमें अगणित बहिष्कार हैं।
मुझमें झंकृत स्वर वीणा के,
मुझमें अगणित संस्कार हैं।
मुझमें गौरव गाथाएँ हैं,
मुझमें नमन शहीदी गान।
मुझमें ही है वंदे मातरम्,
मुझमें ही है राष्ट्रगान।
नव भारत की नवल आस मैं,
मैं ही नवल धवल शुभ्रता हूँ।
स्वतंत्रता हूँ, स्वतंत्रता हूँ,
मैं भारत की स्वतंत्रता हूँ।
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