विनय विश्वा - कैमूर, भभुआ (बिहार)
गुरु - कविता - विनय विश्वा
मंगलवार, सितंबर 05, 2023
गुरु वहीं जो ज्ञान बताए
भटके हुए को राह दिखाए
जीवन मिले ना फिर ये कभी
हर मोड़ पर जीवटता सिखाए
गुरु वहीं जो ज्ञान बताए
मुर्दे में भी जान लाए
ज्ञान ज्ञान ज्ञान
तू है मेरी जान।
शब्दों की है ना कारीगरी
है तो यह मेरी ज़मीं
बुद्ध की धरती से हैं हम
सगरी करुणा की गगरी हैं हम
मानव यहीं मानव हुए
अंगुलिमाल से आनंद हुए
सिद्धों-नाथो, पूरब-पश्चिम
की यह भाषा हुए
ज्ञान ज्ञान ज्ञान
बिन गुरु है
कहाँ ज्ञान
जान जान जान
ख़ुद को ही तू जान
मान मान मान
अप्प दीपो ज्ञान
अप्प दीपो ज्ञान।
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