शाश्वत दीप - कविता - संजय राजभर 'समित'
शुक्रवार, सितंबर 08, 2023
मेरे अंदर एक मोम है
जो जलता है
जलते-जलते एक दिन बुझ जाता है
फिर जन्म लेता है
फिर यही प्रक्रिया–
हमेशा जलता रहे
तो चलना पड़ेगा
समझना पड़ेगा
अप्प दीपो भवः बनकर
राम, कृष्ण और बुद्ध को।
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