ईशांत त्रिपाठी - मैदानी, रीवा (मध्य प्रदेश)
बिरजू केर पापा - बघेली लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
शुक्रवार, सितंबर 22, 2023
थोर क हरबी करा, विमला! तू त ओहिन ठे गड़ी गए। कइसन हरबी करी बिरजू के पापा, नंदी जी केर काने म अब बोलबओ मुसकिल किहे हेन अपना। त विमला! क होत हय नंदी जी केर काने म फुसुर-फुसर करय से, हमहूं क बताबा। ओहो बिरजू, एतना बड़ा होइगा, अपना का नहीं मालूम, फुरिन दतनिपोर हेन। नंदी जी हमार कहा अब जइहीं त भोलेबाबा का बतइहीं अउर (आगे बोलय के पहिलेन नगीचे काग़ज़ म दुइ ठे रोटी रखी रही)... होदा हो! गैया केर रोटी बछबा खाये लिहिस, मारा-मारा... (गुर्राय केर) खाय लिहिस न मल्हर मल्हर दौड़े म अपना केर। टीबी बाले गुरु जी बताइन त गौ का खबाबय के हबै। न हो विमला, त गौ म दूनौ आबत ह, गइया अउर बइल। ज्यादा न पोथी सिखाई, देबि देउतन क हमसे निकहा न जानब अपना, गोड़ बढ़ाई जल्दी जल्दी जउने क आजु आराम मिलय रसोइया से।
पंगत लाग, जनमदिन केर भोजन म सबसे पहिले बिरजू के पापा बइठे। भोजन आबा अउर लोगबाग परसिन, दुइन मिनट म भितरे से आबाज आबत हिबय कि ऐ हो !बिरजू केर पापा हरबी हरबी खइ थोका... घरे महिमान आये ह कोउ।
नहीं जानिन बिरजू केर पापा कि बिमला काहे कहति हइ य मेर। कुछु नहीं मिला त अपने थारिन म एक कगर भोग लगा दिहिन भगमान क... अऊ हरबिन पहिल कउर खात ह। पहिलेन कउर म खाना गोरु गदहा बाला लाग। जिउ-नकुआ बाँध खाइन और हरबी हरबी म आख़िरी केर भगबानओ के भोग अनजान खाय लिहिन... दुई मिनिट क पछिताने फेर सोचिन य क चमत्कार आय। जउन खाना भगमान क भोग लगा रहा; ओखर स्वाद त बहुत मीठ रहा हबै। लखि गे बिरजू केर पापा कि भगमान केर जे होइ जात हय, ओखर अइसै अबगुन हेरा जात ह।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर