राहिल खान - सांचौर (राजस्थान)
ग़लत-फ़हमी और समझदारी - लघुकथा - राहिल खान
रविवार, अक्टूबर 01, 2023
एक बार एक सुनार की आकस्मिक मृत्यु के बाद उसका परिवार मुसीबत में पड़ गया उनके लिए भोजन के भी लाले पड़ने लगे। एक दिन मृत सुनार की पत्नी ने अपने बेटे को नीलम का हार देकर कहा– "इसे अपने चाचा की दुकान पर ले जाओ और कहना इसे बेच कर कुछ रूपये दे देे।"
बेटा वह हार लेकर अपने चाचा की दुकान पर गया और चाचा को हार दिया। चाचा ने देख परख कर कहा– "बेटा! अपनी माँ से कहना अभी मार्केट बहुत मंदा है थोड़ा रुक कर बेचना, अच्छे दाम मिलेंगे।"
उस लड़के को चाचा ने कुछ रूपये देकर कहा– "कल से तुम मेरी दुकान पर आकर बैठना।"
अगले दिन से वो लड़का चाचा की दुकान पर जाने लगा और हीरे जवाहरात की परख का काम सीखने लगा।
अब वह हीरे जवाहरात की परख करने में माहिर हो गया। दूर-दूर से लोग उसके पास आने लगे।
एक दिन चाचा ने उससे कहा कि– "अपनी माँ से वो नीलम का हार लेकर आना और कहना की अभी मार्केट बहुत तेज़ है और अब उसके अच्छे दाम मिलेंगे।"
पर दूसरे दिन लड़के ने माँ से वो हार लेकर परखा तो पाया कि वो तो नक़ली है। तब चाचा ने कहा कि– "तुम पहले दिन वो हार लेकर आए तब मैंने अगर इसे नक़ली बता दिया होता तब तुम सोचते की आज हमारा बुरा वक़्त आया तो चाचा हमारी चीज़ को जाली बताने लगे, आज जब तुम्हे ख़ुद ज्ञात हो गया तब पता चल गया की हार नक़ली है।
सच तो यही है कि इल्म और जानकारी के बग़ैर इस दुनिया मेंं ऐसे ही ग़लतफ़हमी का शिकार होकर बेहद क़रीबी और पारिवारिक रिश्ते बिगड़ जाते है।
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