नई किरणों के विरुद्ध - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
सोमवार, दिसंबर 18, 2023
प्रकाश की रजत उज्ज्वला का दीप्त आवरण
तुम्हारे विश्वास को थपकी दे रहा है
मन की तरंग के आनंद खड़े हैं परिचित मार्ग
प्रातः कोमलता की नई किरणों के विरुद्ध
अचानक ये पहरा क्यों चारों ओर
आश्चर्य है कि मैं स्वरविहीन मौन
इस पैचाशिक समय के घनघोर में
कातर भीरुता के निविड़ शोर में
कुछ फीके उत्साह से भरा हूँ
विपुलता के उन्माद से डरा हूँ
विश्वास की उम्रों में
इस डरावने दिन का वारिस
अंतरिक्ष से गिरता है एक सजीव शब्द उम्मीद से भरी
तुम्हारे गहरे अँधेरे में
रात्रि का साँय-साँय करता प्रहर
अचानक से विद्रोह करता है
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