गए साल का सलाम - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'
सोमवार, जनवरी 01, 2024
गए साल का सलाम
नए साल का सलाम
जिसने मेरे दिल को तोड़ा
जिसने मुझसे मुँह को मोड़ा
जिसने मुझको तन्हा छोड़ा
जिसने मेरा साथ न छोड़ा
हर साहबान को सलाम
गए साल का सलाम
नए साल का सलाम
झूठ बोले जो उन सारे सच्चों को
मासूम नन्हें-नन्हें प्यारे बच्चों को
कलियों और फूलों के गुच्छों को
हर बाग़बान को सलाम
गए साल का सलाम
नए साल का सलाम
इस देश की उम्मीदों को जगाकर
लहू में रखना एक आग जलाकर
हम पीछे नहीं हटेंगे सर झुकाकर
हर जज़्बा वान को सलाम
गए साल का सलाम
नए साल का सलाम
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