यायावर तेरा धन्य त्याग - कविता - राघवेंद्र सिंह
गुरुवार, जनवरी 04, 2024
छाया अम्बर में विशद राग,
यायावर तेरा धन्य त्याग।
वातायन खोले खड़ी प्रकृति,
दर्पण सी दिखती नवल कृति।
केशों का गुंथन खुला आज,
आया परिवर्तन पहन ताज।
धाराओं में दिखता प्रवाह,
रश्मियाँ धरातल पर अथाह।
स्तब्ध हो रहे दृग विशाल,
म्यानों में दिखता है कराल।
भर रही निशा है उच्छवास,
प्रश्नों की प्रतिध्वनि का उजास।
सागर भरता क्षण भर उफान,
दब जाते रव के सब विधान।
निर्झर, निर्भय हो उठे आज,
रातों ने पहना स्वर्ण ताज।
लालायित होते दिग दिगंत,
पंखुड़ियाँ नत मस्तक अनंत।
तन अनल, सरल-सा है प्रतीत,
मरुस्थल गाते दिखे गीत।
हारों का अभिवादन स्वरूप,
देदीप्यमान नव पल अनूप।
वीणाओं का स्वर है सुरम्य,
वसुधा के सम्मुख सभी नम्य।
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