हे! मृदु मलयानिल अनुभूति - कविता - राघवेंद्र सिंह
शुक्रवार, फ़रवरी 09, 2024
हे! अंतस की चिर विभूति,
हे! मृदु मलयानिल अनुभूति।
तुमसे ही होते मुखर भाव,
कम्पित पुलकित दृग के विभाव।
तुम लेकर आती नव विहान,
द्रुत चपल तरंगों का विधान।
निष्प्राण, शून्य जागृत करती,
तुम शाश्वत स्पंदन भरती।
तुम आती लेकर नवल हार,
स्वप्नों की अवगुंठित पुकार।
श्वासोंं की थिरकन खुल जाती,
नयनों की आशा धूल जाती।
तुमसे ही उठता महा ज्वार,
धाराओं का तंद्रिल विहार।
प्राणों की तृष्णा मिट जाती,
संशय की चादर छिंट जाती।
करुणानत होते स्वयं शब्द,
अंतर्मन होता प्रणय लब्ध।
स्वर गीतों को देते प्रवाह,
स्निग्धमयी नव ललित राह।
तुमसे होता प्रत्यक्षवाद,
तुमसे ही जन्मता है संवाद।
तुम रस रहस्य की मनोभूति,
हो धन्य जगत में अनुभूति।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर