राजेश 'राज' - कन्नौज (उत्तर प्रदेश)
ऋतुराज - कविता - राजेश 'राज'
मंगलवार, मार्च 05, 2024
दहक रहीं डालें पलाश की,
झूमीं शाखाएँ अमलतास की।
मंजरियों से पल्लवित आम हैं,
कोयल कितनी स्फूर्तिवान है।
ओढ़े सरसों पीली चुनरी,
फूली-फूली फिरे भ्रामरी।
अरे क्या ऋतुराज आ गया!
देखो तो मधुमास छा गया॥
गुलशन अच्छादित फूलों से,
मिल गई निजात उसूलों से।
मकरंद लूटतीं फिरें तितलियाँ,
भँवरें नाचें लेकर झपकियाँ।
प्राची ने सुरभि फैलाई,
तटिनी ने ली है अँगड़ाई।
अरे क्या ऋतुराज आ गया!
देखो तो मधुमास छा गया॥
मन का मधुबन ही पतझर था,
सूना-सूना सा पल हर था।
हृदय के आँगन में गूंजे गीत,
उदास राहों को मिले हैं मीत।
चिंतन में सुर्खी आई है,
अब धरा ने ली तरुणाई है।
अरे क्या ऋतुराज आ गया!
देखो तो मधुमास छा गया॥
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