विपिन उपाध्याय - भवानीमण्डी, झालावाड़ (राजस्थान)
पंछियों का दर्द - कविता - विपिन उपाध्याय
बुधवार, अप्रैल 03, 2024
हम है पंछी
हाय रे गर्मी
आई रे गर्मी
हम है आसमान में उड़ते
स्वयं ही अपना दाना चुकते
हाय रे गर्मी
आई रे गर्मी
सर्दी से हमें नही है दिक़्क़त
बरसात से हमें नहीं दिक़्क़त
गर्मी मे है पानी की क़िल्लत
हाय रे गर्मी
आई रे गर्मी
हम है पंछी इंसान से कुछ नहीं चाहते
अपनी मर्ज़ी से स्वयं ही दाना चुगते
बस गर्मी मे आपसे यही आस है
हमारी भी बुझती नहीं प्यास है
हाय रे गर्मी
आई रे गर्मी
आप लोगो से इतना है कहना
घर की छतो पर रखो एक मटका
लगता है समय कुछ ही मिनट का
भरो उसमें रोज़ पानी
रखो छतो पर दाना और पानी
हाय रे गर्मी
आई रे गर्मी
हम है पक्षी हमें लगती प्यास है
आप लोगो से आस है
बाँधो हमारे लिए एक परिंडा
भरो उसमें दाना पानी
हाय रे गर्मी
आई रे गर्मी
बचालो पानी पीला कर हमारे प्राण है
हमारे बच्चो मे बसी हमारी जान है
दुआ देंगे आप लोगो को दिल से
हर गर्मी मे पानी पिलाओ हमे दिल से
हम है पक्षी हमारी भी आप लोगो से आस है
हमें भी लगती प्यास है
हाय रे गर्मी
आई रे गर्मी
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