अक्षर अक्षर कहे कहानी - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'

अक्षर अक्षर कहे कहानी
कही पे सुखा कही पे पानी

सहम गए क्यूँ एक छोटी सी
ठोकर खाकर ठहर गए
चट्टान से थे जो फ़ौलादी 
पल भर में क्यूँ बिखर गए
तरती है ये जीवन नैया
पतवार सा जो लहर गए
उम्मीदों को जोड़कर आओ 
रचनी है एक कहानी
अक्षर अक्षर कहे कहानी...

आओ इनसे बात करें 
जीवन में कुछ राग भरें 
इन आँखों के सूनेपन में 
सपनों की सौग़ात भरें
खोल के अरमानों के पंख
एक नई परवाज़ करें 
भूल जा प्यारे क्या है खोया
सोच तुझे क्या है पानी
अक्षर अक्षर कहे कहानी... 

मेहनत का सीना चीरने वाले
अपने हक़ की बात करो
क्या क्या उपजा? कितना उपजा?
थोड़ा सा तुम अंदाज़ करो
जन्मदाता हो तुम महीप
मूल बात ये जान लो
करने को संधान अमोघ 
उठ जा तू बलिदानी
अक्षर अक्षर कहे कहानी...


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