मयंक द्विवेदी - गलियाकोट, डुंगरपुर (राजस्थान)
हे तथागत ये बताओं - कविता - मयंक द्विवेदी
गुरुवार, मई 09, 2024
हे तथागत ये बताओ
जीवन का क्या मर्म है?
कैसे हो जीवन का उद्धार
क्या संन्यास ही है मुक्ति का द्वार
कैसे सम्भव है जन्म पर ना हर्ष हो?
और मृत्यु पर शोक!
होगी अधोगति या सदगति
या सुधरेगा परलोक?
क्या यातनाएँ वेदनाएँ
विधी का विधान है या
पूर्व जन्म के कर्मों का उपहार?
हे तथागत ये बताओं
संन्यास ही है क्या मुक्ति का द्वार?
क्या त्याग कर अपने कर्म को
दुत्कार दे निज धर्म को!
कैसे सहे प्रियजनों के वियोग का
यह हृदय आघात
हे तथागत ये बताओं
संन्यास ही है क्या मुक्ति का द्वार?
ये कठोर तप और ये साधना
ये इन्द्रियों के अश्व को थामना
यह तृण की सेज और दिगम्बर वस्त्र!
कैसे हो तृष्णा का नाश
हे तथागत ये बताओं
संन्यास ही है क्या मुक्ति का द्वार?
क्या ध्यान से क्षमित होगी इन्द्रियाँ
क्या जन्म मृत्यु के चक्र से
मिला तुम्हे पारित्राण!
क्या दे पाओगे तुम
मुझे ईश्वर का प्रमाण!
हे तथागत ये बताओं
संन्यास ही है क्या मुक्ति का द्वार?
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