भगत - केदारघाटी (उत्तराखंड)
मैया मैं ठहरा संन्यासी - कविता - भगत
गुरुवार, मई 16, 2024
मैया मैं ठहरा संन्यासी
भोग विलासी सब संसारी
मुझको आत्मसुधा ही प्यारी
राम रसायन की हे मैया
आत्मा मेरी प्यासी
मैया मैं ठहरा संन्यासी
इस जग के ये भोग न भावें
मुझको प्रभु प्रेम के रोग सतावें
मैया ये संसार की बातें
मेरे समझ ना आवें
जब तक हरी ना मिल जावेंगे
मिटेगी ना मेरी उदासी
मैया मैं ठहरा संन्यासी
तू मुझे नारी से ब्याहना चाहे
चित्त मेरा ले गए बनवारी
मैया मेरा साजन वो है
जिसकी माया दासी
मैया मैं ठहरा संन्यासी
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