सूर्य प्रकाश शर्मा - आगरा (उत्तर प्रदेश)
फ़र्क़ है - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा
सोमवार, जून 24, 2024
फ़र्क़ है
श्रीराम की जयकार करने में,
और अपने तात की आज्ञा शिरोधार्य करने में,
और सबके हित के कार्य करने में,
फ़र्क़ है।
फ़र्क़ है
भरत को राम का प्रिय भाई बताने में,
और अपने बड़े भाई को सताने में,
और छोटे भाईयों पर हक़ जताने में,
फ़र्क़ है।
फ़र्क़ है
‘सिया आदर्श नारी थीं’ सिखाने में,
और अपने अंगों को दिखाने में,
और पापी के महल को छोड़,
वृक्ष के नीचे जीवन बिताने में,
फ़र्क़ है।
फ़र्क़ है
विभीषण को कभी ग़द्दार कहने में,
और अपने बंधु के अत्याचार सहने में,
और विनाश की ओर जाने वाले के साथ रहने में,
फ़र्क़ है।
फ़र्क़ है
भरे बाज़ार में रावण जलाने में,
औ’ पराक्रम से कैलाश-सा पर्वत उठाने में,
और अपनी बहन के सम्मान हेतु, स्वयं भगवान से लड़ जाने में,
फ़र्क़ है।
फ़र्क़ है
प्रभु राम की गाथाएँ गाने में,
और पुरुषोत्तम सदृश जीवन बिताने में,
और प्रभु श्रीराम-सी मर्यादा निभाने में,
फ़र्क़ है।
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