सागर 'नवोदित' - दिल्ली
कर्म-पथ पे चलना है तुझे - कविता - सागर 'नवोदित'
गुरुवार, जून 13, 2024
पथ नहीं अंजान वो, जिस पर चलना है तुझे,
भरकर एक विश्वास नया, हर पल बढ़ना है तुझे।
बना तलवार कलम को, पहन कवच ज्ञान का,
फैला जो अंधकार यहाँ पे, अब दूर करना है तुझे।
बन ज्ञानी विवेक से, बदलने स्वरूप समाज का,
ऊँचे पर्वत और गहरी दरिया, पार करना है तुझे।
चढ़कर सीढ़ी ज्ञान की, बन एक आदर्श कर्म का,
निस्वार्थ भाव से ही, मानव सेवक बनना है तुझे।
न हो बातें दंभ की, भरकर विनम्र भाव हृदय में,
जन-जन के हृदय में, प्रेम भाव भरना है तुझे।
बनकर रौशनी एक आस की, चमक इस जग में,
लेकर दीन हीन को साथ में, आगे बढ़ना है तुझे।
धारण कर धीरज मन में, लेकर भाव समर्थ का,
राह पे नीति की, कड़ी कसौटी से गुज़रना है तुझे।
मुश्किल न मंज़िल कोई, गर साथ रहे सच का,
देकर सोच नई औरों को, कर्मवीर बनाना है तुझे।
चलकर पथरीले पथ पे, कर मुक़ाबला संघर्ष का,
लक्ष्य नहीं आम, कुछ बड़ा हासिल करना है तुझे।
घाव लगे पैरों में, चाहे पीड़ा हो अंतर्मन मन में,
चलता चल कर्मपथ पे, जिस पर चलना है तुझे।
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