निर्मल कुमार गुप्ता - सीतापुर (उत्तर प्रदेश)
सूरत में सीरत नहीं मिलती - कविता - निर्मल कुमार गुप्ता
मंगलवार, जून 11, 2024
सच है, सूरत में सीरत नहीं मिलती।
सूरत कुछ और नज़र आती है,
सीरत कुछ और नज़र आती है।
बनावटी चेहरों की पहचान झलक जाती है।
कुछ सूरत से सुन्दर हैं,
पर सीरत से बदसूरत नज़र आते हैं।
कुछ अनचाहे चेहरे हैं,
पर सीरत से ख़ूबसूरत नज़र आते हैं।
सच है, सूरत में सीरत नहीं मिलती।
सूरत कुछ और नज़र आती है,
सीरत कुछ और नज़र आती है।
लोग सूरत पर मर मिटते हैं,
सीरत का उन्हें अंदाज़ नहीं।
सच पूछो, तो उन्हें ख़ूबसूरती की कोई पहचान नहीं।
बड़े नसीब वाले हैं,
जो सूरत और सीरत से मालामाल हैं।
क्या कहूँ ये सब कुदरत का कमाल है।
सच है, सूरत में सीरत नहीं मिलती।
सूरत कुछ और नज़र आती है,
सीरत कुछ और नज़र आती है।
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