मयंक द्विवेदी - गलियाकोट, डुंगरपुर (राजस्थान)
यह राष्ट्र माटी पर मर मिटने वालों का है - कविता - मयंक द्विवेदी
मंगलवार, जून 18, 2024
यह केवल एक राष्ट्र नहीं
ना समझौते का ख़ाका है
इसके कण-कण में
युगों-युगों की बलिदानों की गाथा है।
यह केवल एक भू-खण्ड नहीं
ना स्वार्थपरक बुनियादी ढाँचा है
पुरब से पश्चिम उत्तर से दक्षिण को
जन-जन ने तन-मन से
एक सूत्र में साधा है।
यह धरा वीरों की भूमि
सिहों को जिसने पाला है
जंगल-जंगल ख़ाक छानते
शिवा, यही हुए प्रताप राणा है।
सभ्यताओं की यह जननी
आदर्शो की पराकाष्ठा है
धर्म कर्म की यह मोक्ष भूमि
वसुधैव कुटुम्ब ही अभिलाषा है।
संस्कृतियाँ मिठास घोलती
राष्ट्र विविध धर्म के रंगो का है
यह देश नौजवानों,
हलधर और मेहनत कश हाथों का है
अखण्ड राष्ट्र हेतु करो उत्सर्ग साथियों
राष्ट्र माटी पर मिटने वालों का है।
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