सुनीता प्रशांत - उज्जैन (मध्य प्रदेश)
प्रिय तुम कुछ बोलो - कविता - सुनीता प्रशांत
बुधवार, जुलाई 03, 2024
प्रिय तुम कुछ बोलो
झोली शब्दों की खोलो
थाम लूँगी उन शब्दों को
सजा लूँगी माथे पर
सहेजूँगी जीवन भर
समेट लूँगी उन्हें मन में
फैला दूँगी मन आँगन में
ख़ुशबू से सरोबार हवाएँ होंगी
हर्षित सुरभित फ़िज़ाएँ होंगी
तुम्हारे शब्दों के सागर में
सलिला-सी समा जाऊँगी
या सुरों से सजाकर उन्हें
गीत कोई मैं गाऊँगी
पिरो लूँगी प्रेम तागे से
पहन उन्हें मैं इठलाऊँगी
ये ही तो हैं मेरी जीवन बहार
तृषित मन पर सावन की फुहार
शब्द ही तुम्हारे हैं मेरा संबल
मेरे नयनों का यही तो है अंजन
तोड़ दो भावनाओं के तटबंध
मिटा दो सारे अंतर्द्वंद्व
द्वार हृदय के सारे खोलो
प्रिय तुम तो बस बोलो
कानों में मिसरी घोलो
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