वारीन्द्र पाण्डेय - जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
मार्कण्डेय महादेव मंदिर - लेख - वारीन्द्र पाण्डेय
शुक्रवार, जुलाई 26, 2024
शिव की अगाध श्रद्धा का केंद्र हैं मार्कण्डेय महादेव मंदिर, यहाँ मिलता है पुत्र कामना की पूर्ति का आशीर्वाद। सावन भर लगता है भक्तों का ताँता।
वाराणसी से क़रीब 30 किमी दूर गंगा-गोमती के संगम तट पर एक ऐसा स्थान है जहाँ निर्मल मन से भगवान भोलेनाथ को जलाभिषेक करने पर भक्तों के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। पुराणों में भी इस बात का उल्लेख है कि भारत के महा ऋषि मार्कण्डेय ने तपस्या करते हुए यहाँ शिव अर्चना किए थे। तब से यह स्थान देश भर में स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंगों के समकक्ष पूजनीय हैं।
जिसे मार्कंडेय महादेव धाम के नाम से जाना जाता है। जहाँ वर्ष भर हर तेरस तिथि के साथ महाशिवरात्री के अवसर पर भक्तों का ताँता लगाता है। यह मंदिर वाराणसी गाजीपुर राजमार्ग पर स्थित कैथी गाँव के पास है। गंगा और गोमती के अन्तस्थल में वन्य हरीतिमा के बीच आलोडित जलराशि के बीच सामने स्थित मार्कण्डेय महादेव मंदिर मन को अभिभूत कर देता है।
मंदिर का महात्म्य:
आध्यामिक दृष्टि से इस स्थान का महत्व इस लिए और बढ़ जाता है कि यहाँ आकर जलाभिषेक करने वालों कि हर मनोकामना पूरी हो जाती है। महाशिवरात्री के अवसर पर यहाँ पूर्वांचल के विभिन्न जिलों से लाखों भक्त जलाभिषेक करने के लिए आते हैं। इस लिए महा शिवरात्री के अवसर पर यहाँ काशी विश्वनाथ मंदिर से भी ज्यादा भीड़ होती है। सावन माह भर मेला लगता है। मार्कण्डेय महादेव मंदिर उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थलों में से एक है। विभिन्न प्रकार की परेशानियों से ग्रसित लोग अपनी दुःखों को दूर करने के लिए यहाँ आते हैं। मार्कण्डेय महादेव मंदिर की मान्यता है कि जिसे संतान नही है वें लोग यदि 'महाशिवरात्रि' और उसके दूसरे दिन 'श्रीराम' नाम लिखा बेल पत्र अर्पित करे तो उन्हें अवश्य ही महादेव की कृपा से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।
मंदिर के और इसके अधिष्ठाता के बारे में कई कहानियाँ प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि प्राचीन काल में ऋषि मृकंड को पुत्र के रूप में मार्कण्डेय ऋषि का जन्म हुआ था। उनके पिता ऋषि मृकण्ड को ज्योतिषियों ने बताया कि बालक को आयु दोष है। यह बालक अत्यंत प्रतिभावान होगा किंतु इसकी आयु मात्र 14 वर्ष है। यह सुनकर माता-पिता सदमें आ गए। बालक मार्कण्डेय के मुखमंडल की चमचमाती आभा ऋषि पत्नी को बेचैन कर रही थी। किसी क़ीमत पर ऐसे सुंदर पुत्र को वें खोना नहीं चाहती थीं। ऋषि मृकंड ने ज्योतिषशास्त्र के ज्ञानी ब्राह्मणों की सलाह पर बालक मार्कण्डेय के चिर-आयु हेतु गंगा गोमती संगम तट पर तपस्या करने लगे। जहाँ बालू से शिव विग्रह बनाकर शिव भगवान शंकर की घोर उपासना में लीन हो गए। माता-पिता का अनुशरण करते हुए बालक मार्कण्डेय भी शिव आराधना करने लगा। समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा। धीरे-धीरे 14 वर्ष बीत गए। मार्कण्डेय का अंतिम दिवस आया तो यमराज उन्हें लेने आ गए। बालक मार्कण्डेय उस वक्त शिवलिंग से आलिंगनबद्ध होकर भगवान शिव की अराधना में लीन थे। उनके प्राण हरने के लिए जैसे ही यमराज आगे बढ़े तभी महादेव प्रकट हो गए। भगवान भोलेनाथ ने यमराज से कहा "ऋषि पुत्र मार्कण्डेय मेरा अनन्य भक्त है, और मुझसे आलिंगनबद्ध है। इस लिए हे! यमराज इसके प्राण ले जाने के लिए आप को मेरा भी प्राण लेना पड़ेगा।" यह सुनकर यमराज ने कहा "हे! भोलेनाथ मृत्यु तो आप का ही बनाया विधान है। हम तो आप के अनुचर हैं।" यह कहकर यमराज ने अपने पाँव वापस कर लिए। महादेव ने बालक मार्कण्डेय को चिर आयु का वरदान देते हुए कहा कि "मेरा भक्त सदैव अमर रहेगा, मुझसे पहले उसकी पूजा की जाएगी।" तभी से उस जगह पर मार्कण्डेय जी व महादेव जी की पूजा एक साथ की जाने लगी। और यह स्थल मार्कण्डेय महादेव धाम के नाम से प्रसिद्ध हो गया। यहाँ शंकर भगवान का विशाल मन्दिर निर्मित है। वही मंदिर के गर्भगृह की दिवाल में मार्कण्डेय ऋषि का भी विग्रह स्थापित है। यहाँ आकर सभी भक्तजन भोलेनाथ के साथ ही मार्कण्डेय ऋषि का भी जलाभिषेक व पूजा करते हैं। इसी लिए इस स्थान का नाम मार्कण्डेय महादेव धाम के नासमझ से प्रसिद्ध है। लोगों का ऐसा मानना है कि महाशिवरात्रि व सावन मास में यहाँ राम नाम लिखा बेलपत्र व एक लोटा जल चढाने से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती है। मार्कण्डेय महादेव मंदिर में त्रयोदशी (तेरस) का भी बड़ा महत्व होता है। यहाँ पुत्र रत्न की कामना व पति के दीर्घायु की कामना को लेकर लोग आते है। यहाँ महामृत्युंजय, शिवपुराण, रुद्राभिषेक, व सत्यनारायण भगवान की कथा का भक्तगण श्रवण करते हैं। महाशिवरात्रि पर दो दिनो तक अनवरत जलाभिषेक करने की परम्परा है। यहाँ शिवरात्रि के दूसरे दिन लगने वाले मेले में गृहस्थ घरेलू सामानों की खरीदारी भी करते हैं। यहाँ के मेले में भेड़ों की लड़ाई लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। महाशिवरात्रि की पूर्व संध्या पर गाज़ीपुर, मऊ, बलिया, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, आज़मगढ, समेत कई अन्य जनपदों के लोगों का जमघट देर शाम तक लगा रहता है। यह स्थान देशभर में फैले ज्योतिर्लिंगों के समकक्ष ही मान्यता प्राप्त है।
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