मित्रता - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'

मित्रता - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' | Geet - Mitrata. मित्रता पर गीत कविता
मनमीत हृदय समुदार सदय, गूंजार मित्र बहलाता है।
हर सुख दुख पल छाया बन कर, नित घाव हृदय सहलाता है।
चकाचौंध विरत बिन मत्त सुयश, सम्मान मीत उद्गाता है।
बन अभिभावक साथी सहचर, विश्वास परस्पर पाता है।
विद्वेष विरत सत्कार्य निरत, हर आपद धर्म निभाता है।
सहयोग परस्पर मीत करे, गुणगान अपर मुख्य करता है।
संभाले कुत्सित कर्म निरत, धिक्कार मीत को देता है।
बस बने सहारा मीत सफ़र, मुस्कान अधर सुख दाता है।
बस आज दोस्त प्रतिकूल बने, जब स्वार्थ तिमिर छा जाता है।
बस तनिक चोट लगता है दिली, दोस्त शत्रु क्षण बन जाता है।
दिलदार दोस्ती नाज़ुक दिल, कटु भाष घाव दिल दाता है।
खुलती सब बातें शत्रु बिफर, अपमान लोक करवाता है।
है सहज नहीं निर्वाह मीत, सावधान दोस्त नित रहता है।
सम शान्ति चित्त बस प्रेम‍ सुधा परमार्थ मुदित मन भाता है।
निष्कपट भाव सत्काम सुपथ, संकल्प मित्र बन जाता है।
कृष्ण सुदामा सम मीत कहाँ, कहँ कर्ण सुयोधन मिलता है।
बस स्वार्थ पूर्ति धोखा प्रपंच, बस संवेदन दिल खोता है।
सद्भाव हृदय मैत्री समरस, आनंद मीत बरसाता है।
सद् मित्र बिना जीवन सूना, सौभाग्य मीत मिल जाता है।
सारी ख़ुशियाँ पा मित्र मिलन, राम भील सखा उद्गाता है।


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