निधि चन्द्रा - दतौद, जैजैपुर (छत्तीसगढ़)
आधुनिकीकरण का समय - कविता - निधि चंद्रा
शनिवार, अगस्त 17, 2024
एक ऐसा समय आया,
जब आधुनिकीकरण की रफ़्तार बढ़ी,
समय के साथ चलते-चलते,
इसने नए युग की नींव गढ़ी,
विकास के साथ-साथ इसने,
बहुत कुछ बदल डाला,
जहाँ हुआ करती थी
कभी भरपूर हरियाली,
अब वहाँ दिखता बस धुआँ काला,
इस दौर ने लोगों को रोज़गार तो दिया,
पर बदले में उसका
सुख छीन लिया,
कारखानो में काम करता
वह मज़दूर,
ना जाने घर से कितना है दूर,
दीर्घअवधि कड़ी मेहनत के बाद,
भी नहीं सुधरे उसके हालात,
इस दौर में वह काम में इतना खो गया,
उसे पता ही नहीं चला कि,
कब वो अपने आप से दूर हो गया,
इसने न जाने कितने पेड़ों को काट कर,
कितने जंगलों को उजाड़ डाला,
और स्वयं का आश्रय निर्माण कर,
बेज़ुबान जंतुओं से उनका आवास छीन डाला।
तरु की घटती संख्या ने,
अपना प्रकोप दिखाया,
बादलों से मुँह मोड़कर,
प्रकृति ने हमें भीषण आग में तपाया,
एक ऐसा समय आया,
एक ऐसा समय आया॥
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