चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव - प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)
बोझ, ज़िम्मेदारी और राखी का धागा - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
सोमवार, अगस्त 19, 2024
है बोझ बड़ा भारी सिर पर,
ज़िम्मेदारियों का भार उठाए,
हर साँस में है एक नई जंग,
पर दिल है तुम्हारे नाम का साए।
नाराज़ न होना, बहना मेरी,
न आ सका इस बार मैं राह में,
मंज़िल की डगर पर चलते-चलते,
तुम्हारी यादें हैं हर एक आह में।
राखी की वो पवित्र डोरी,
जो तुमने बाँधी थी प्रेम से,
आज भी है वो मेरे कंधों पर,
जैसे ढाल बनी हो संघर्ष के क्षेम से।
ये फ़ासले बस दूरी का नाम है,
रिश्तों में कोई दरार नहीं,
तुम्हारे बिना इस पर्व की ख़ुशी,
जैसे बिन धूप के बहार नहीं।
समय की बेड़ियों में हूँ जकड़ा,
पर मन है तुम्हारे पास बंधा,
राखी का ये धागा नाज़ुक सही,
पर यह बंधन है सबसे सधा।
समर्पण की इस गाथा को,
कवि भी निहारे दिल थाम के,
रिश्तों की इस गहराई को,
हर कोई माने प्यार के नाम पे।
तुम ख़ुश रहो, मुस्कान बनी रहे,
भाई का दिल तुम्हारे लिए सदा धड़के,
हर फ़ासले को मिटा दूँ,
जब अगली बार तुम्हारे आँगन में ये क़दम बढ़े।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर