चले हैं पैदल - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा

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सबल हाथों से 
उठा स्नेह जल,
चले हैं पैदल।

बाहर के जल से,
अन्तर जगाना है।
जल की भान्ति,
मन पावन बनाना है।
ओम् धुन सदल,
चले हैं पैदल।

मार्ग की सुधि नहीं,
लक्ष्य की क्षति नहीं।
बाहर की यात्रा,
भीतर की यात्रा।
नहीं क्षीण बल,
चले हैं पैदल।

वरूण के पाश से बचना है,
ब्रह्म की चहूँ दिश रचना है।
हृदयाकाश में
आप की कल कल,
चले हैं पैदल। 


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