हम दोनों का यूँ बार-बार लड़ना - कविता - तेज नारायण राय

हम दोनों का यूँ बार-बार लड़ना - कविता - तेज नारायण राय | Hindi Kavita - Hum Donon Ka Yoon Baar Baar Ladna
हम दोनों का आपस में
बार-बार लड़ना
छोटी-छोटी बातों को
तिल का ताड़ बनाना
एक दूसरे को उँगली दिखाना
क्या अच्छा लगता है?

क्या ऐसा नहीं लगता कि
हम दोनों का यूँ ही बार-बार लड़ना
अपने जीवन को उलझाना है

क्या ऐसा नहीं लगता कि
यह हमारे आपस की एकता को खंडित करना है
एक दूसरे के विश्वास की डोर को तोड़ना है बार-बार हमारा लड़ना

घर की हरी भरी बगिया को
अपने ही हाथों उजाड़ना है

सच तो यह है कि हम दोनों का अक्सर यूँ ही लड़ना
अपने ही जीवन की सीढ़ी पर चढ़ कर बार-बार गिरना है–
हम दोनों का लड़ना

अपने ही हाथों से छिनना है अपने घर परिवार का सुख चैन

जीवन की किताब के सुनहरे पन्नों को 
ख़ुद अपने हाथों फाड़ कर फेंकना है हम दोनों का यूँ अक्सर लड़ना

क्या तुम्हें नहीं लगता कि
हम दोनों के आपस में लड़ते रहने से
जीवन फूल नहीं शूल खिलेंगे

लोग नहीं समझेंगे हमें
गुणों का गुलदस्ता
बल्कि अवगुणों की खान समझेंगे

समझेंगे पैरों की धूल
इसलिए मत करो ऐसी भूल
कि जब तक रहेंगे हम दोनों
तब तक नीचे नज़र से देखेंगे हमें लोग
देंगे अक्सर उलाहना
सुनना होगा ज़िंदगी भर दूसरों का ताना।

तेज नारायण राय - दुमका (झारखण्ड)

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