अनुज - आगरा (उत्तर प्रदेश)
हमें मिली आज़ादी थी - कविता - अनुज
बुधवार, अगस्त 14, 2024
आधी रात को सुनाई दी वो गूँज
ढोल और ताँशे की थी,
आधी रात को चमका था सूरज
क्योंकि हमें मिली आज़ादी थी।
सोने की चिड़िया ने आज
लोहे की ज़ंजीरें काटी थीं,
अंग्रेज़ों को उखाड़ फेंका
क्योंकि वो हिन्दुस्तानियों की माटी थी।
जय-जयकार की जिसने भारत की
वो भारत की 34 करोड़ की आबादी थी,
आधी रात को चमका था सूरज
क्योंकि हमें मिली आज़ादी थी।
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