लोग अब जग रहें हैं - कविता - इला कुमारी

लोग अब जग रहें हैं - कविता - इला कुमारी | Hindi Kavita - Log Ab Jag Rahen Hain - Ila Kumari
लोग अब जग
रहें हैं
अपनी ही नींद से
अपनी ही नींद में होने वाले
भयानक स्वप्न से।
हाँ, अब वे जग रहें हैं
अपनी ही नींद में
दख़ल देने वाले
अप्रत्यक्ष अदृश्य हाथों के
दबोचे जाने के 
आतंक के ख़िलाफ़
वे अचानक से
उठकर बैठ जाते हैं
धीरे-धीरे ही सही
उठकर बैठ जाना भी
जागृत होने की ही
अवस्था होती है।
लेकिन अब वे
चल पड़ेंगे
हाँ, चल पड़ेंगे
इस नींद में सोई 
व्यवस्था के विरुद्ध।

इला कुमारी - छपरा (बिहार)

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