न्याय याचना - कविता - विजय कुमार सुतेरी

न्याय याचना - कविता - विजय कुमार सुतेरी | Hindi Kavita - Nyaay Yaachana - Vijay kumar suteri. Hindi Poem On Women | नारी पर कविता
रचना पृष्ठभूमि: यह रचना पश्चिम बंगाल में हाल में हुए एक डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के विषय में है जिसमें महिलाओं को अपनी शक्ति और ऊर्जा को पहचानने के विषय में बताया गया है।

तुम न्याय का याचन मत करना,
उम्मीद बाँध कर मत रखना।
हो सके राह में चलते-चलते,
सर को चुनरी से मत ढकना।

तुम एक रोज़ यूँ ही ज़रा ग़ौर करना,
गाहे-ब-गाहे ख़ुद के भीतर ज़रा शोर करना।
तुम पूछना ख़ुद से कि तुम क्या खो रही हो,
अस्तित्वहीन सपनो की लंबी नीद सो रही हो।

कोई आए और सब कुछ रौंद कर चला जाए,
तुम्हारा जिस्म, तुम्हारी रूह तक छलनी कर जाए।
और तुम्हारे पीछे मोम्बतियों के उजाले में लोग–
इंसाफ़ माँगते कुछ रात सड़कों पर चिल्लाएँ।

है मिला किसे इंसाफ़ यहाँ, मोमबत्ती की रोशनी तले,
राख बहोत से घर हुए है, कुछ जले कुछ अधजले।
कुछ समाचार में छाए, कुछ अख़बारों की सुर्ख़ियों के नाम रहे,
कुछ इज़्ज़त की ख़ातिर, चार दीवारों में गुमनाम रहे।

लतपथ रक्त से सना तन बदन, दूर तक जाती ख़ून की धार,
इन दृश्यों की परपाटी अंतहीन चली आ रही है।
तुम्हारी ख़ुद को कमज़ोर कहने की परंपरा आज–
किसी होनहार डॉक्टर की बलि खा रही है।

कोई कोना ढूँढ़ लेना ख़ुद को सुरक्षित रखने के लिए,
गलियाँ, सड़कें, अस्पताल, खुली हवा बस इनसे दूर रहना।
सिसकियों में जीवन के रस का लुत्फ़ उठाना,
पर भूलना मत ख़ुद को "स्त्री और मजबूर" कहना।

हाँ अगर सुना है कभी "चंडी" का नरसंहार,
तो संभल स्त्री! उठा खड्ग और चामुंडी तलवार।
इतिहास बना ऐसा, वो जो सदियों तक गाया जाए,
हो एक तो कोई मर्दानी, जो झाँसी की फिर याद दिलाए।

कोमल पुष्पों की काया के काँटे रखवाले होते हैं,
सौभाग्य बनाती नारी के हाथों में भाले होते हैं।
वैभव ऐसा कि दुश्मन की बाँह उखाड़े लहरा दे,
हिम्मत मानो अपनी निजता के, द्वारों पर ख़ुद पहरा दे।

हो विषम वेदना कितनी भी,
आँसू आँखों के मत चखना।
तुम न्याय का याचन मत करना,
उम्मीद बाँध कर मत रखना।

विजय कुमार सुतेरी - लोहाघाट (उत्तराखंड)

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