आलोक गोयल - ग़ाज़ियाबाद (उत्तर प्रदेश)
स्त्रीत्व - कविता - आलोक गोयल
मंगलवार, अगस्त 06, 2024
देवी बनने की चाह नहीं
नारी ही मुझको रहने दो,
बाँधों से मत रोको अब
स्वच्छंद नदी-सी बहने दो।
मैं पूजा की वस्तु नहीं
इतना भी अभिमान ना दो,
पूज्य नहीं बस मित्र बन सकूँ
इतना ही सम्मान मुझे दो।
बात-बात पर तौले मुझको
ऐसा समाज निर्माण ना हो,
मेरे वस्त्रों की नाप जहाँ
मेरे चरित्र का प्रमाण ना हो।
हर लक्ष्य मुझे अब पाना है
संघर्ष मेरे व्यवहार में हो,
मेरी सीमाओं का निर्धारण
मेरे ही अधिकार में हो।
हर कार्य करना है मुझे
हर लक्ष्य की मैं हूँ अधिकारी,
अपनी सीमाओं का निर्धारण
अब है मेरी ही ज़िम्मेदारी।
आभारी हूँ ईश्वर की जिसने
मात्रत्व का अधिकार दिया,
सृष्टि के निर्माण हेतु
स्त्रीत्व को स्वीकार किया।
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