बहन-भाई के प्यार का नाम है रक्षाबंधन - लेख - डॉ॰ जय महलवाल 'अनजान'

बहन-भाई के प्यार का नाम है रक्षाबंधन - लेख - डॉ॰ जय महलवाल 'अनजान' | Rakshabandhan Lekh, Nibandh. Nibandh Raksha Bandhan
हमारे भारतवर्ष में हर त्यौहार की अपनी महता है। भारतवर्ष में रक्षाबंधन के त्यौहार को भाई बहन के प्यार के रूप में बहुत ही स्नेह और आदरपूर्वक मनाया जाता है। यह भारत का एक प्रमुख त्यौहार है। पूरे साल बहनें इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार करती हैं और अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधने को बेताब रहती हैं। यह दिन विशेष रूप से भाई और बहन के लिए ही समर्पित है। रक्षाबंधन हर वर्ष श्रावणी पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष (2024 को) यह त्यौहार 19 अगस्त को बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा। इस दिन सब बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती हैं और भाई भी प्रेम स्वरूप कुछ ना कुछ भेंट अपनी बहन को देते हैं और साथ ही ज़िंदगी भर उसकी रक्षा करने का वचन भी देते हैं। जबकि बहनें भाई की लंबी उम्र की दुआ भगवान से करती है। ऐसा कहा जा रहा है कि इस बार बहन अपने भाई की कलाई पर राखी शुभ मुहूर्त दोपहर 1:33 बजे से रात्रि 9:08 मिनट तक में बाँध सकती हैं। जिसमें कि शाम 6:56 बजे से 9:08 बजे तक प्रदोष काल रहेगा। 1:32 बजे तक भद्रा काल रहेगा। ऐसी मान्यता है कि भद्रा काल में बहनें अपनी भाई की कलाई पर राखी नहीं बाँधती हैं इसको शुभ नहीं माना जाता है।

आख़िर क्या है भद्रा काल –

संस्कृत भाषा में भद्र का अर्थ है शुभ या अच्छा। अगर पंचांग की बात की जाए तो भद्राकाल एक बहुत ही अशुभ समय होता है । ऐसी मान्यता है कि इसके बहुत ही विनाशकारी परिणाम होते हैं। इसलिए भद्रा काल में राखी बाँधने को शुभ नहीं माना जाता है। पौराणिक कहानी के अनुसार देवी भद्र शनिदेव की बहन थी जिसका स्वभाव विनाश करना था, इसलिए शायद इसी मान्यता के अनुसार राखी हमेशा ही भद्रा काल के बाद बाँधी जाती है। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार शूर्पणखा ने अपने भाई रावण को भद्रा काल में राखी बाँधी थी जिसके परिणाम स्वरुप रावण और उसका पूरा वंश नष्ट हो गया था।
ऐसी मान्यता है कि भद्र का असर स्वर्ग लोक में शुभ तथा पाताल लोक में धन और पृथ्वी लोक में मृत्यु होता है। इसलिए भी भद्रा काल में बहने अपने भाई की कलाई पर राखी नहीं बाँधती हैं।

रक्षाबंधन का इतिहास –

अगर इतिहास में झाँका जाए तो हमें रक्षाबंधन को मनाने के प्रमाण बहुत पहले से मिलते हैं। रक्षाबंधन की शुरुआत लगभग 6000 वर्ष पूर्व से हुई है। वैसे तो महाभारत में भी इसके कुछ-कुछ प्रमाण हमें मिलते हैं। कहा जाता है कि जब भगवान श्री कृष्णा शिशुपाल का वध कर रहे थे तब उनकी तर्जनी उँगली पर चोट लग गई थी और उससे रक्त बहने लगा था। तभी द्रौपदी ने अपनी साड़ी से थोड़ा सा वस्त्र फाड़ कर उनकी उँगली पर बाँध दिया था। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। उस दिन भगवान श्री कृष्ण ने द्रोपति को उसकी रक्षा का वचन भी दिया था जिसको की उन्होंने जब द्रोपदी का चीर हरण हुआ था तो उस वक्त पूरा किया था। कहा जाता है कि इसी परंपरा के अनुसार भाई बहन के त्यौहार रक्षाबंधन को मनाने का प्रचलन शुरू हुआ था।

रक्षाबंधन का धार्मिक महत्व –

अगर हिंदू धर्म की बात की जाए तो रक्षाबंधन के दिन भारतवर्ष में रहने वाले ब्राह्मण अपना जनेऊ बदलते हैं और सब धर्म ग्रंथो  के प्रति ख़ुद को पुनः समर्पित करते हैं। जहाँ एक और बहनें भाई की रक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं वहीं दूसरी तरफ़ भाई भी अपनी बहनों के ऊपर आने वाली हर विपत्ति से उसकी रक्षा करने का उसको वचन देते हैं।

रक्षाबंधन प्रेम का प्रतीक –

रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है जो कि प्रेम का प्रतीक है। ऐसा नहीं है कि यह त्यौहार हिंदुओं में ही मनाया जाता है अगर हम अतीत की बात करें तो जब मध्यकालीन युग में राजपूत और मुसलमानों के बीच बहुत जोरदार युद्ध चल रहा था, उस समय चित्तौड़गढ़ के राजा की विधवा पत्नी रानी कर्णावती को हार का डर सता रहा था और उसने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से प्रजा की रक्षा हेतु असमर्थतता लगने के कारण हुमायूँ को राखी भेज दी थी। हुमायूँ ने भी कर्णावती को अपनी बहन मानकर उनकी रक्षा करने का वचन दिया था। हम सबको भी यह त्यौहार बड़े प्रेम और धार्मिक सद्भाव के साथ मनाना चाहिए। यह त्यौहार बहुत ही पवित्र और प्रेम का प्रतीक है।

गुग्गा राणा गाथा – 

उत्तर भारत में रक्षाबंधन के दिन से नौ दिनों तक गुग्गा राणा की गाथा गाई जाती है। लोग समूह में (मंडली) घर-घर जाकर लोकगाथाओं के माध्यम से गुग्गा जाहरवीर की गाथा सुनाते है। माना जाता है ये सापों से रक्षा करते है। बच्चे अपनी कलाई पर सुंदर-सुंदर राखियाँ बाँधते है जिसको की गुग्गा नवमी के दिन कलाई से उतार दिया जाता है।

डॉ॰ जय महलवाल 'अनजान' - बिलासपुर (हिमाचल प्रदेश)

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