रच दे पौरुष राष्ट्र हित - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
बुधवार, सितंबर 25, 2024
रचना कविता काकिली, करे वक्त का गान।
दशा दिशा सुख दुख यथा, करती कर्म बखान॥
नवप्रभात नव प्रगति पथ, रचो कीर्ति अभिराम।
क्या पाया क्या खो दिया, मंथन हो नित शाम॥
मिटे मनुज अवसाद मन, कर्मवीर जो लोक।
खुलें राह निज मंज़िलें, मिटे विघ्न तम शोक॥
रस गागर कवि तूलिका, चले समुन्नति राह।
खोले पौरुष द्वार को, पूर्ण युवा हर चाह॥
सत्य कर्म पथ साधना, वन्दनीय संसार।
सफल वही सेवार्थ जग, मानवीय आधार॥
युवाशक्ति ज्वाला दहन, राष्ट्रद्रोह हो ख़ाक।
अब भी चेतो दहशती, बंगदेश नापाक॥
गोपालक ग्वाला प्रथित, गोवर्धन गोपाल।
कर्मयोग प्रेरक जगत, मातु यशोदा लाल॥
सुखमय वाणी चंद्र सम, शीतल मधुर सुहास।
बने अपर रिश्ते मधुर, अपनापन आभास॥
बनो चतुर विद्या ग्रहण, कौशल चारु सुकाज।
समझ दर्द दर्दिल हृदय, करो मदद दे नाज़॥
तुझको तेरे बाद भी, याद रखे संसार।
रच दे पौरुष राष्ट्र हित, ज्ञानवीर बन यार॥
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