तेरे मन का मैं ही राजा - गीत - संजय राजभर 'समित'

तेरे मन का मैं ही राजा - गीत - संजय राजभर 'समित' | Pati Patni Geet - Tere Man Ka Main Hi Raja | पति पत्नी गीत
मैं जानता हूॅं राज़ तेरा,
खोई-खोई रहती हो।
तेरे मन का मैं ही राजा,
आँखों से तुम कहती हो।

तुझे जाना होता है कहीं,
पर, कहीं पहुॅंच जाती हो।
बिन देखें एक झलक मुझको,
तन्हा-तन्हा पाती हो।

प्यासी घटा विरहिणी सी पर,
निर्मल धारा बहती हो।
तेरे मन का मैं ही राजा,
आँखों से तुम कहती हो।

उफनाती नदियाँ मस्ती में,
तट तोड़ सदा बहती हैं।
जा मिलना है बस सागर से,
गर्वित हक़ से कहती हैं।

पर तू निरीह पगली-सी क्यूँ?
विरह वेदना सहती हो।
तेरे मन का मैं ही राजा,
आँखों से तुम कहती हो।

स्वीकार कर प्रस्ताव मेरा,
बाॅंह फैलाए खड़ा हूॅं।
अब छोड़ कर संकोच सारा,
अन्तर्द्वन्द से लड़ा हूॅं।

वरदान है यह प्रेम धारा,
फिर क्यों पल-पल ढहती हो।
तेरे मन का मैं ही राजा,
आँखों से तुम कहती हो।


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