आव्हान - कविता - सुनीता प्रशांत

आव्हान - कविता - सुनीता प्रशांत | Hindi Kavita - Aavhaan - Sunita Prasant. Hindi Poem On Women Power. नारी शक्ति पर कविता
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
क्या आशय समझूँ मैं इसका
मज़ाक बन रहा मेरे जीवन का
हे देवी! किस देह मंदिर में बैठी हो तुम
या पत्थर की हो गई हो तुम
कोई आता है तुम्हे तोड़ जाता है
तुम्हारा अस्तित्व मरोड़ जाता है
उठो जागो अपना रूप धरो
अपनी अस्मिता के लिए कुछ करो
नर तो नर रहे नहीं
तुम भी नारायणी न कहलाओगी
कब तक दूसरों के आगे
अपने हाथ फैलाओगी
अब कृष्ण नहीं सब कली है
दुर्योधन बैठे गली-गली हैं
ईश्वर भी अंधा बहरा है
चारों ओर उसके भी पहरा है
उठो नारी तुम न सरस्वती बनो
न ही सीता द्रोपदी बनो
फिर अग्नि परीक्षा देनी होगी
या दाँव पर लगा दी जाओगी
बन जाओ बस तुम दुर्गा
कर दो मर्दन इन राक्षसों का
देव बैठे रहेंगे सजे धजे मंदिरों में
ताले लगे रहेंगे न्याय मंदिरों में
माँगोगी न्याय तो फिर उद्धार होगा
हुआ अत्याचार उसका प्रचार होगा
कोई न है तुम्हारा इस जग में
कहेंगे बैठो चुपचाप अपने घर में
कोई न तुम्हे बचाएगा
दोष हर कोई तुम पर ही लगाएगा
कहानी तुम बना दी जाओगी
कुछ दिन में भुला दी जाओगी
मिटा दो इन राक्षसों को
धवल वस्त्रों में छिपे हैवानों को
नक़ाब इनका हटाना होगा
आइना इन्हे दिखाना होगा
रक्षण स्वयं तुम्हें करना होगा
अस्तित्व अपना बचाना होगा
इस जग में हिम्मत से जीना होगा।

सुनीता प्रशांत - उज्जैन (मध्य प्रदेश)

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