अभिलाषा - कविता - मयंक द्विवेदी

अभिलाषा - कविता - मयंक द्विवेदी | Hindi Kavita - Abhilasha - Hindi Poem On Wish. अभिलाषा पर कविता
हृदय, तुम्ही बतला दो
क्या यही तुम्हारी अभिलाषा है?
क्यों नन्ही कोमल सी कलियों से मन को
काँटों का संग भाया है?
हृदय, तुम्ही बतला दो
क्या यही तुम्हारी अभिलाषा है?

तुमने होना चाहा खग, मन से
क्या तुम्हें तरू ने लुभाया है?
या फिर होना चाहा, जो बीन तिनके
तूफ़ानों से आँख मिलाकर आया है?
हृदय, तुम्ही बतला दो
क्या यही तुम्हारी अभिलाषा है?

तुमने चाहा मिट्टी के साँचों में ढलना
कोमल स्पर्श स्नेह जहाँ पलना है
या फिर चाहा उस शीतल गागर को
जहाँ पहले अंगारों में जलना है?
हृदय, तुम्ही बतला दो
क्या यही तुम्हारी अभिलाषा है?

क्यों संन्यासी सा भेष धरे
क्यों तपती संघर्षों में काया है?
जो जिव्हा ना बोल रही
झलक रही आँखों से वह
क्या यही सादगी की परिभाषा है?
तुमने चाही थी जो
क्या यही उस जीवन की गाथा है!
हृदय, तुम्ही बतला दो
क्या यही तुम्हारी अभिलाषा है?


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