मयंक द्विवेदी - गलियाकोट, डुंगरपुर (राजस्थान)
अभिलाषा - कविता - मयंक द्विवेदी
सोमवार, सितंबर 09, 2024
हृदय, तुम्ही बतला दो
क्या यही तुम्हारी अभिलाषा है?
क्यों नन्ही कोमल सी कलियों से मन को
काँटों का संग भाया है?
हृदय, तुम्ही बतला दो
क्या यही तुम्हारी अभिलाषा है?
तुमने होना चाहा खग, मन से
क्या तुम्हें तरू ने लुभाया है?
या फिर होना चाहा, जो बीन तिनके
तूफ़ानों से आँख मिलाकर आया है?
हृदय, तुम्ही बतला दो
क्या यही तुम्हारी अभिलाषा है?
तुमने चाहा मिट्टी के साँचों में ढलना
कोमल स्पर्श स्नेह जहाँ पलना है
या फिर चाहा उस शीतल गागर को
जहाँ पहले अंगारों में जलना है?
हृदय, तुम्ही बतला दो
क्या यही तुम्हारी अभिलाषा है?
क्यों संन्यासी सा भेष धरे
क्यों तपती संघर्षों में काया है?
जो जिव्हा ना बोल रही
झलक रही आँखों से वह
क्या यही सादगी की परिभाषा है?
तुमने चाही थी जो
क्या यही उस जीवन की गाथा है!
हृदय, तुम्ही बतला दो
क्या यही तुम्हारी अभिलाषा है?
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर