देवेश द्विवेदी 'देवेश' - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
हमने देखी हैं - कविता - देवेश द्विवेदी 'देवेश'
बुधवार, सितंबर 18, 2024
कितनी लाते-घातें हमने देखी हैं,
जीवन की शह-मातें हमने देखी हैं,
दुःख को सहते लोग अकेले देखे हैं,
सुख के संग बारातें हमने देखी हैं।
उजली-काली रातें हमने देखी हैं,
दिल को चुभती बातें हमने देखी हैं,
जो अपना बन हमको छलते रहते हैं,
उनकी भी औक़ातें हमने देखी हैं।
घिरकर आते-जाते हमने देखी हैं,
बिन बादल बरसातें हमने देखी हैं,
धुला दूध का जो अपने को कहता है,
उसकी सब करामातें हमने देखी हैं।
ख़ुदग़र्ज़ी की ख़ैरातें हमने देखी हैं,
मुफ़्त बँटी सौग़ातें हमने देखी हैं,
गिरगिट सा जो रंग बदलने वाले हैं,
उनकी भी ख़ुराफ़ातें हमने देखी हैं।
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