ख़ुशियों से ग़म तक - कविता - अलका ओझा

ख़ुशियों से ग़म तक - कविता - अलका ओझा | Hindi Kavita - Khushiyon Se Gham Tak. Hindi Sad Poems, Sad Poetry | ग़म पर कविता
ख़ुशियों की भी एक सीमा होती है
अधिक प्रसन्न होने का क़र्ज़
अधिक दुःख पाकर चुकाना पड़ता है
न जाने क्या है
कि मुझे आश्चर्य नहीं होता
मैंने हर स्थिति को जैसी आती हैं
वैसे ही स्वीकार कर लिया है
मुझे नहीं पता कि आगे क्या होना है
बस अपने को अच्छा ही होगा समझा लिया है

कभी कभी ख़ुशियाँ व्यक्ति के
ख़ुश होने से पहले ख़त्म हो जाती हैं।
कुछ ग़म आसुओं के बह जाने पर भी ख़त्म नहीं होते
एक अजनबीपन महसूस होता है ख़ुद से
शायद मैंने ख़ुद को जानने की कोशिश ही नहीं की
क्या पता था कि जितना हम ख़ुश हुए हैं
उससे कहीं अधिक ग़म हमारे क़िस्से में लिखा है

आज का हँस कर सोना ही
कल सुबह की आँसुओ में ख़त्म होगा
और परसों ये आँसुओ का सागर ख़त्म हो जाएगा
पर तुम्हारे ज़ख़्म हरे रहेंगे
जाने क्यों अब ख़ुश होने से डर लगता है
कहीं इस ख़ुशी के बाद
मेरे ग़म का पिटारा न खुल जाए
दुनियाँ कितनी सादी (साधारण) है
है नहीं बस दिखती है।


Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos