कुछ भाव थे कुछ बनावट - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
सोमवार, सितंबर 09, 2024
कुछ भाव थे कुछ बनावट,
शब्दों में थी हृदय की आहट।
उनकी इनकी गिनी थी पीड़ा,
दूजों के लिए थी यह क्रीड़ा।
दर्ज़ की पंक्तियों में वह अकुलाहट।
छन्दों से भिड़ कर,
अपने भीतर
कुछ मरकर।
जीवन की गाँठ खोलकर,
अधिक चुप कुछ बोलकर,
और थोड़ी सी निज गीतों की लिखावट।
आदर के अक्षर समूह,
निरादर के थे छुपे व्यूह।
जैसे ऊँचे सूरज का झुकना,
जैसे अँधेरे की जगमगाहट।
कुछ भाव थे कुछ बनावट॥
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