अधूरी कविताएँ - कविता - निखिल 'प्रयाग'

अधूरी कविताएँ - कविता - निखिल 'प्रयाग' | Hindi Kavita - Adhoori Kavitaayein. कवि और कविता पर कविता। Hindi Poem On Poet and Poem
सुनो- 
तुम्हारी कविताएँ मुझे
अधूरी सी क्यों लगती है,
अधूरी सी?
हाँ अधूरी सी...!
जैसे!
जैसे उसमें अभी 
बहुत कुछ है लिखने को;
ओह..!
मतलब तुम डूब गए,
डूब गए मेरी कविताओं में;
हाँ अक्सर मेरी कविताएँ
अधूरी रह जाती हैं,
मेरी कविताएँ
कोई दुख की सागर नहीं है,
जिसे पार करके
व्यक्ति को सुख की प्राप्ति हो;
मेरी कविताएँ तो
स्वादिष्ट व्यंजन है,
जिसे खाने पर पेट तो भर जाए
पर मन बिल्कुल भी नहीं।

तुम्हारी कविताओं के
अंतिम चरण से
मुझे लगाव हैं,
जैसे–
घर से कोई बच्चा जा रहा हो
घर से दूर,
और माँ का जो प्रेम
उस समय अपने चरम पर होता है,
एक रुदन सा आभास होता है;
आभास होता है कि
कविता समाप्त होगी
और तुम चले जाओगे
कोसों दूर,

समझ गई ना,
इसीलिए मेरी कविताएँ
अधूरी प्रतीत होती है।
मैं नहीं चाहता
मैं किसी से दूर जाऊँ,
मैं चाहता हूँ
मैं रहूँ सबके पास
अपनी अधूरी कविताएँ बनकर...!

निखिल 'प्रयाग' - प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

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