चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव - प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)
अजेय - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
शुक्रवार, नवंबर 22, 2024
हारे क्यों थकान से,
डरे क्यों तूफ़ान से।
गिर बार-बार सही,
फिर भी वार कर सही।
राह में अड़चनें सही,
हौसला बुलंद कर वही।
रुकावटों से ना डर,
जीत को बार-बार कर।
चोटों को सहेज ले,
क़दमों को तेज़ कर ले।
हर दिक्कत को पार कर,
मंज़िल पर वार कर।
रुकने का सवाल ही क्या,
थकने का ख़्याल ही क्या।
मंज़िल जो दूर है अगर,
हर क़दम को आग कर।
गिर के उठना सीख ले,
हार से भिड़ना सीख ले।
राहों से हार मान मत,
हर मुसीबत पार कर।
हौसला बनाए रख,
ठोकरों से नाता रख।
मंज़िल पे वार कर यूँ,
हर जीत को अपना कर।
थक कर बैठना नहीं,
मुश्किलों से कहना नहीं।
हर गिरावट को मात दे,
अपने हौसले को साथ दे।
हर चोट को संजीवनी बना,
हर ठोकर को सीढ़ी बना।
हार को तू हार मान मत,
हर क़दम को कर प्रहार सख़्त।
रास्ते अगर कठिन दिखें,
मन में आग की लहर उठा।
मंज़िल को पकड़, छोड़ मत,
हर संघर्ष को चीर, डट।
आँधियों से खेल जा,
हर रुकावट को झेल जा।
जीत की दस्तक सामने है,
बस ख़ुद पर ऐतबार कर।
मंज़िल पर वार कर...
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